अफगानिस्तान और पाकिस्तान में जारी सीमा तनाव के बीच तालिबान निजाम ने वाखान इलाके में पाकिस्तानी नियंत्रण की खबरों को सिरे खारिज किया है। पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट्स को नकारते हुए तालिबान नेता सुहैल शाहीन ने अमर उजाला को बताया कि वाखान अफगानिस्तान का अभिन्न हिस्सा है। उन्होंने कहा, “हमारे सुरक्षा बल इलाके में तैनात हैं और किसी भी क्षेत्रीय हिमाकत का भरपूर जवाब दिया जाएगा।”
अफगान वाखान गलियारा वो इलाका है जहाँ भारत और अफगानिस्तान की करीब 106 किमी की सरहद लगती है। भारत के आधिकारिक मानचित्र में जम्मू-कश्मीर की सरहद का एक हिस्सा अफगानिस्तान के वाखान इलाके से लगता है। हालांकि पीओके समेत गिलगित-बाल्टिस्तान का यह क्षेत्र पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है।
पाकिस्तान और अफगान तालिबान में जारी सीमा तनाव के बीच पाक मीडिया में कई खबरें प्रकाशित हुईं हैं जिनमें दावा किया गया कि पाक फौज ने वाखान पर नियंत्रण बना लिया है। हालांकि इस बाबत आई खबरों के साथ न तो पाकिस्तान सरकार का कोई आधिकारिक बयान प्रकाशित किया गया और न ही पाक फौज ने इस बारे में कुछ कहा है। मगर, फौजी सूत्रों के हवाले से प्रकाशित अधिकतर इन खबरों में न केवल वाखान में पाक फौजी ऑपरेशन की औऱ इशारा किया गया, बल्कि इस इलाके से पाकिस्तान को रणनीतिक बढ़ता मिलने का भी दावा किया गया।
अफगानिस्तान के नक्शे में वाखान वो संकरा गलियारा है जिसे इस मुल्का का चिकन नैक भी कहा जाता है। करीब 350 किमी लंबा और न्यूनतम करीब 15 किमी चौड़ाई वाला यह इलाका अफगानिस्तान के उत्तर-पूर्व में बादकशान सूबे में है। इसकी एक तरफ ताजिकिस्तान, दूसरी तरफ पाकिस्तान है तो साथ ही चीन की भी सीमा का एक छोटा इलाका है।
ऐतिहासिक नजरिए से यह इलाका पुराने सिल्क रूट का हिस्सा है। साथ ही भारत-मध्य एशिया और चीन को जोड़ने वाला पुराना रास्ता रहा है। हालांकि 19वीं सदी के बाद से लगातार यह इलाका साम्राज्यों और बड़ी शक्तियों के खेल का हिस्सा रहा है।
इन खबरों को हाल ही में पाकिस्तान आईएसाआई प्रमुख ले.जनरल आसिम मलिक के ताजिकिस्तान दौरे ने भी हवा दी। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के मुखिया जनरल मलिक ने ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति इमामोली रहमान 30 दिसंबर 2024 को मुलाकात की थी। उनका यह दौरा 24-25 दिसंबर को अफगानिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में हुई पाकिस्तानी एयर स्ट्राइक के बाद हुआ था।
पाकिस्तान केस बना रहा है कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के लड़ाकों को अफगानिस्तान का तालिबान निजाम पनाह दे रहा है। साथ ही वाखान गलियारे का इस्तेमाल यह आतंकी गुट छुपने के लिए भी करते हैं। इतना ही नहीं पाकिस्तान ने आदतन तोहमत भारत के माथे भी मढ़ी है। हालांकि भारत के विदेश मंत्रालय ने दो-टूक कहा है कि पाकिस्तान अपनी गलतियों का दोष दूसरों के माथे मढ़ने की आदत से बाज़ आए।
इस बीच तालिबानी निजाम के गृह मंत्रालय ने बीते दो हफ्तों में अपनी सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए यह दिखाने का प्रयास किया है कि वाखान समेत देश के कई इलाकों में कैसे उसके सुरक्षा बलों हथियारों की धर-पकड़ कर रहे हैं। इतना ही नहीं अफगान रक्षा मंत्रालय ने भी इस बात का भी ऐलान किया कि उसके सैनिकों के पास अब मिलन कॉन्कर मिसाइल है जो टैंक और हैलिकॉप्टर को भी मार गिरा सकती हैं।
वाखान का यह इलाका अधिकतर पहाड़ी है जहाँ मौसम कठिन है और बहुत कम आबादी रहती है। लेकिन सदियों से हिंदुकुश औऱ पामीर की पहाड़ियों के बीच मौजूद यह क्षेत्र अहम व्यापारिक रास्ता रहा है। ऐसे में पाकिस्तान, चीन और ताजिकिस्तान समेत सभी की नजर इस इलाके पर लगी हो तो आश्चर्य नहीं है। खासतौर पर कथित चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना औऱ बेल्ट एंड रोड योजना के लिए यह बहुत अहम है।
क्यों है पाकिस्तान की नजर
पाकिस्तान अगर वाखान के इलाके पर कब्जा करता है तो अफगानिस्तान पर दबाव बना सकता है। साथ ही उसे तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान पर कार्रवाई का दबाव बना सकता है।
इतना ही नहीं अगर यह इलाका उसके नियंत्रण में आता है तो उसे सीधे ताजिकिस्तान के रास्ते मध्य-एशिया का रास्ता मिल जाएगा। साथ ही चीन की मदद से बन रही आर्थिक गलियारा परियोजना की सुरक्षा भी उसके लिए आसान होगी।
क्या है चीन के लिए अहमियत?
वाखान के इलाके की अहमियत चीन पहले से जानता है। पिछले कुछ सालों में उसने वाखान के दुर्गम इलाकों में सड़कें बनाने में अपना निवेश किया है। तालिबान निजाम के आने के बाद भी वाखान इलाके के रास्ते चीन औऱ अगफानिस्तान को जोड़ने वाली 49किमी की रणनीतिक रोड परियोजना पर काम आगे बढ़ा है। बाताया जाता है कि इस सड़क का 40 फीसद काम पूरा भी हो गया है।
वाखान के रास्ते चीन की नजर अफगानिस्तान को अपनी बेल्ट-एंड-रोड योजना से जोड़ने औऱ अपने कारोबार के लिए नया रास्ता तलाशने की है। वाखान की नई सड़के के सहारे चीन को अफगानिस्तान के रास्ते ईरान के बंदरगाह तक पहुंच चाहिए।
ताजिकिस्तान की दिलचस्पी
कयासी चर्चाएं इस बात को लेकर भी चल रही हैं कि पाकिस्तानी फौज, चीन की रजामंदी से वाखान के इलाके को ताजिकिस्तान को भी दे सकती है। इसके पीछे दलील दी जा रही है कि चारों तरफ जमीनी सीमाओं से घिरे ताजिकिस्तान को वाखान के जरिए सीधे पाकिस्तान के कराची बंदरगाह तक का रास्ता मिल जाएगा। वहीं ताजिकिस्तान के साथ सबसे ज्यादा कारोबार करने वाले चीन के लिए भी सहूलियतें बढ़ जाएंगे।
अमेरिका की भी है नजर
कुछ समय पहले तक अफगानिस्तान में मौजूद रहे अमेरिका की भी नजर इस इलाके पर बनी हुई है। खासतौर पर अमेरिका में दोबारा राष्ट्रपति बन रहे डॉनल्ड ट्रंप के प्रशासन की नीतियों पर तालिबान भी नजरें जमाए है। तालिबान के उप-विदेश मंत्री शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकज़ई ने कहा कि नए अमेरिकी प्रशासन के साथ अमेरिका को नीतियों में बदलाव करना चाहिए। ताकि अमेरिका औऱ अफगानिस्तान के बीच रिश्ते बेहतर हो सकें।
ध्यान रहे कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसो को लेकर दोहा में तालिबान के साथ डील 2016-2020 डॉनल्ड ट्रंप के शासन में ही हुई थी।
भारत क्या करेगा?
अफगानिस्तान को लेकर सधी नीति के साथ आगे बढ़ रहे भारत भी वाखान समेत इस इलाके के घटनाक्रमों पर लगातार नजर बनाए है। अफगानिस्तान के इलाकों में पाकिस्तानी एयर स्ट्राइक पर प्रतिक्रिया के साथ भारत ने इसे जाहिर भी कर दिया है। वाखान के साथ भारतीय सीमा लगती है लिहाजा पाकिस्तान यदि इस इलाके में मौजूदा स्थिति बदलने की कोशिश करता है तो भारत चुप नहीं बैठेगा। तालिबान निजाम को भारत औपचारिक मान्यता तो नहीं देता है, लेकिन कामकाजी रिश्तों के साथ साथ लगातार संवाद की हॉट लाइन बरकरार है।
पीओके और गिलगित बाल्टिस्तान इलाके में पाकिस्तान जिस मनमर्जी के साथ चीन की परियोजनाओं को जगह दे रहा है, वो भारत के लिए चिंता का सबब रहा है। इस इलाके में चीन और पाकिस्तान की बढ़ती सरगर्मी भारत के लिए रणनीतिक चिंता को बढ़ाती ही है।
वाखान के इलाके को लेकर चिंताएं इसलिए भी हैं क्योंकि तालिबान गुटों की पकड़ कंधार और काबुल के मुकाबले इन इलाकों में कमजोर रही है। यह इलाका पंजशेर घाटी से करीब का है सो यहाँ तालिबान विरोधी और आतंकी हमले में मारे गए अहमद शाह मसूद के समर्थक नेशनल रेजिस्टेंस फोर्स के लड़ाकों का गढ़ रहा है। तालिबान निजाम जब पिछली बार सत्ता में आया था तो उसने इस क्षेत्र पर अपना नियंत्रण भी नहीं स्थापित किया था। लेकिन अगस्त 2021 में काबुल की सत्ता में वापसी के बाद तालिबान इस क्षेत्र में अपना दबदबा बढ़ाना शुरु किया है।
इतिहास बताता है कि वाखान का यह इलाका 1890 तक अविभाजित भारत का ही हिस्सा था। हालांकि ब्रिटिश साम्राज्य ने अफगान शाह के साथ हुए समझौते में इस इलाके को अफगानिस्तान को दे दिया था। साथ ही तय हुई थी अफगानिस्तान औऱ अविभाजित भारत के बीच खिंची डूरंड लाइन जो अब पाकिस्तान के साथ अफगानिस्तान की सीमा है। यह बात अलग है कि अफगानिस्तान इस डूरंड लाइन को सीमा नहीं मानता है।
वाखान की तारीख बताती है कि इसे ब्रिटिश साम्राज्य ने रूसी जार साम्राज्य के बीच दूरी बनाए रखने के लिए बफर जोन की तरह रखा था। यह वो दौर था जिसे इतिहास में ग्रेट गेम कहा जाता है। वहीं एक बार फिर वो दौर है जब इस इलाके में देशों के बीच ग्रेट गेम चल रहा है।